नेता रूपी गंदगी

ये कैसा अभिमान है 
गिरती राजनीत का
ये कैसा मचान है
सटीक भाषा न
तोल मोल कर करते
क्यों ये इतना अभिमान है
ये कैसा इनका स्वाभिमान है
हर रोज़ दंगाई होते ये
रोज़ लड़ाई रोते हैं
बात बात पर झूठ बोलकर
रोज़ मलाई खाते ये
क्या हम इनकी
करतूतों के बाहिया निशान हैं
चढ़ते वादों की चढ़ती मचान है
ये कैसी राजनीति
ये कैसा अभिमान है।
नेता रूपी गंदगी को
सह रहे हम, तू हम कितने महान है।।
                                                                                                            -सोहन सिंह

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