"बेफिकर सी जिन्दगी"

बेफिकर सी चल रही हूं ।
कुछ तो पड़ाऊ हैं मुझमें।।
ठहर भर देख पलट के।
कुछ तो चिनाब है मुझमें।।
गरदिशों में फंस कर जी रही हूं।
रास्तों की फिकर नहीं मुझको।।
आसमानों में मैं उड़ संकू।
ऐसा कुछ कर दे कि मैं जी संकू।।
चलों समय संग डार से डार मिला।
मीत जिन्दगी को मन बसा ।।
रास्तों की परवाह नहीं मुझको।
बस मंजिलों का सफर आसान कर दे।।
काफिले बहुत मिले मुझे।
पर परेशानियां कम नहीं हुई।।
जिन्दगी गमें महताब है ।
जिन्दगी में तू जरा सा रस भर दे।।
गरदिशों में फंस कर जी रही हूं।
तो आंसमा जरा नजदीक कर दे।।
आसमानों में जरा सा नीर भर दे।
जो मुझको सरस अबीर कर दे।।
-सोहन सिंह

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