मैं परिचित तेरी महिमा से न था ए माँ
तूने ही सहज हो अपनाया मुझे
भटक रहा था मैं राहों में
पास बैठा भोजन कराया था मुझे
मैं नादान बना रहा तब तक
तूने आँचल का सिराना न दिया जब तक
अब गोद में तेरी सोना है
आँचल में तेरे रहना है
बहुत भटक लिया अब तक
तेरे गुस्से में भी प्यार भरा है
आंखों में तेरी दुलार भरा है
चाह कर भी होना सका दूर
क्योंकि साँसों में मेरी, तेरा दुलार भरा
पर तेरी डाँट में भी प्यार है माँ
क्योंकि तू दुनिया से न्यारी है माँ
भगवान का सार तुझ में भरा है
कोमल है तेरी पलकों की छाया
सारे सांसार से विशाल है
तेरी ममतामयी काया
रूप तू माँ अम्बे का
पर ह्रदय में ममता का धरा बड़ा है
मुझे तेरी आँचल की छाया में रहना है
क्योंकि तेरी ममता का फ़र्ज
उस ईश्वर के जीवन के कर्ज से बड़ा है
-सोहन सिंह
भटक रहा था मैं राहों में
पास बैठा भोजन कराया था मुझे
मैं नादान बना रहा तब तक
तूने आँचल का सिराना न दिया जब तक
अब गोद में तेरी सोना है
आँचल में तेरे रहना है
बहुत भटक लिया अब तक
तेरे गुस्से में भी प्यार भरा है
आंखों में तेरी दुलार भरा है
चाह कर भी होना सका दूर
क्योंकि साँसों में मेरी, तेरा दुलार भरा
पर तेरी डाँट में भी प्यार है माँ
क्योंकि तू दुनिया से न्यारी है माँ
भगवान का सार तुझ में भरा है
कोमल है तेरी पलकों की छाया
सारे सांसार से विशाल है
तेरी ममतामयी काया
रूप तू माँ अम्बे का
पर ह्रदय में ममता का धरा बड़ा है
मुझे तेरी आँचल की छाया में रहना है
क्योंकि तेरी ममता का फ़र्ज
उस ईश्वर के जीवन के कर्ज से बड़ा है
-सोहन सिंह
Comments
Post a Comment