ह्रदय में पीड़ा अपार
न जाने कब क्षुधा क्षुब्द होगी ,
शुद्ध विचारों से
न जाने कब शब्द निशब्द होंगे
अपनों के उपकारों से
न जाने कब विमुक्त होंगे
गैरों के उधारों
प्रहरी प्रहर बन कब नियुक्त होंगे
उतारी गई धारों से
बन रही रह रह कर माटी
पथर के संघाकारों से
दुख विचलित करता
अपनो के वारों से
निरन्तर प्रहार ही प्रहार हैं
ह्रदय में पीड़ा आपर है
-सोहन सिंह
bahut badiya
ReplyDeletethanks
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