तनहाई की आहट में
तुम किधर जाओगे
मेरा अक्स यहां
तुम लौटकर यहीं आओगे
परछाई एक आदत सी
मिलकर हुई इबादत सी
तुम वहां जाकर क्या सुख पाओगे
तुम लौटकर यहीं आओगे
आदत मेरी पढ़ रही तुमको
इज़हार तुम न कर पायोगे
तड़प तड़प कर रह जाओगे
तुम लौटकर यहीं आओगे
गम हो या खुशी वहां दिखोगी
उस बात को शायद ही तुम समझ न पयोगे
एक बार चली गई
तो तुम ही तड़प कर आओगे
फिर लौटना खुद का मुश्किल पाओगे
मैं कहती हूँ सच का दामन
तुम्हारी सोच क्या है न मैं समझ पाई
और नही तुम मुझे समझा पाओगे
तुम लौटकर यही आओगे
बहुत मुश्किल है समय के घाव भरना
उन घावों के खातिर तुम मुझे पाओगे
मैं न मिलूँगी ये सोच कर तुम पछताओगे
तुम लौटकर तभी यहां आओगे
-सोहन सिंह
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